Thursday, December 31, 2009

हैप्पी न्यू ईयर

नये साल में नई उमंग से...
मिलने हम हैं कदम बढ़ाए.
हंसी-खुशी से बाल पतंग से...
नहीं है ईर्ष्या लेस मात्र भी
सबको गले लगाते हैं.
मंगलमय है वर्ष तुम्हारा दैव से
सदा मनाते हैं.
मिले सारी खुशियां जग की छुलो
नभ की ऊंचाइयों को...
ईश्वर हमेशा दूर रखे
विपदा और तन्हाइयों को.
यहीं हैं कामना एक हमारी
हर पल सफलता मुले तुझे.
नहीं है चाहत और किसी का
आशीष बस दे देना मुझे.

Wednesday, December 23, 2009

बिल्ले का आतंक

बुधवार को मैं जैसे ही न्यूज रुप में घुसा। असाइंमेंट के मेरे एक दोस्त ने कहा कि सर मैं आज को एक मजेदार न्यूज दे रहा हूं। इसके बाद मैंने कहा कि क्या किसी लड़की ने तुम्हें परपोज कर दिया है कि इतने खुश हो रहे हो? उसने कहा नहीं सर। इन दिनों उज्जैन के बड़नगर में एक खूनी बिल्ले का आतंक पसरा हुआ है। ये सुनते ही मैंने झट से उससे कहा कि तुम बहुत ही संवेदनहीन व्यक्ति हो यार। आतंक की बात कर रहे हो और दुखी होने की जगह खुश हो रहे हो। फिर उसका जवाब आया सर इस घटना में एक मजेदार बात ये हैं कि ये बिल्ला केलव और केवल महिलाओं को ही अपना शिकार बना रहा है। उसके मुंह से ये बात निकली ही थी कि मेरे नजरों के सामने एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे का चेहरा मंडराने लगा। साथ ही दिमाग ने अपनी शातिर हरकतें शुरू कर दी। कुछ देर के लिए मैं अपने काम और साथियों को भूल कर ख्यालों में खो गया और तुलना करने लगा कि इस बिल्ले और राज ठाकरे में काफी सम्मानताएं हैं। ये बिल्ला भी खूनी है और राज ठाकरें भी। ये बिल्ला महिलाओं को अपना शिकार बनाता है, तो राज ठाकरे निहत्थे और निर्दोष लोगों को। इन दोनों ही घटना में किसी के आंखों की नींद हराम है, तो किसी को खुशी मिल रही है। बाईस दिसंबर को एमएनएस के गुंडों ने जिस तरह से सिद्धिविनायक मंदिर के बाहर सो रहे निर्दोष साधुओं कहर ढाहा, वो क्या किसी बहशी जानवरों की कहरकतों से कम था। उन बेचारे साधुओं का क्या कसूर था कि दरिंदों ने उन्हें बेरहमी से पीटा। हां तुलना के दौरान उज्जैन के बिल्ले और मुंबई के इस पिल्ले में मैंने जो भिनता पाई, वो ये थी कि उज्जैन के बिल्ले को काबू में करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों ने वड़नगर में डेरा डाल रखा है, लेकिन मुंबई के इस पिल्ले पर लगाम लगाने की जगह महाराष्ट्र सरकार ने इस छुट दे रखी है। वो हर बार कोई ना कोई बहान बना कर राज ठाकरे और उसके गुंडों पर कार्रवाई करने से बच जाती है। मंगलवार को भी महाराष्ट्र सरकार ने खबरियां चैनलों के एमएनएस के गुंडों की करतूत दिखाए जाने के बाद जांच करवाने का बहाना बना कर पल्ला झाड़ लिया।

Friday, November 20, 2009

टैम की मनमानी: आखिर कब तक?

लगता है टैम ने छोटे चैनलों को मिटाने की ठान ली है। इसके लिए उसने एड एजेंसियों से हाथ मिलाया है और अब वो छोटे चैनलों को निगलने के लिए रोज ऊल-जुलूल नियम बना रहा है। ये सब वो अपना पिटारा भरने के लिए कर रहा है। पैसा कमाने के लिए टैम किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखता है। सबसे हैरान कर देने वाली बात ये है कि वो न तो सरकार से डर रहा है और न ही उसे अदालती पचड़ों का खौफ है। अब आप सोच रहे होंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, तो चलिए पहले आपको बताते हैं कि टैम है क्या। टैम एक संस्था है, जो चैनलों की मॉनीटरिंग करती है। टैम सभी चैनलों को तीन तरह के डाटा देता है। इसकी एवज में भारी भरकम फीस वसूलता है। टैम जो तीन डाटा देता है वो हैं- व्यूवरशिप डाटा, चैनल मोनिटरिंग का डाटा और एडेक्स सेवा। व्यूवरशिप डाटा में टैम हर चैनल की टीआरपी यानि टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट और जीआरपी यानि ग्रास रेटिंग प्वाइंट दिखाता है। व्यूवरशिप परखने के लिए टैम सभी चैनलों पर दिखाए जाने वाले प्रोग्रामों और खबरों पर नजर रखता है। चैनल मॉनिटरिंग और एडेक्स के जरिए टैम अलग अलग चैनलों पर चलने वाले विज्ञापनों पर नजर रखता है। चैनल मोनिटरिंग के तहत टैम सभी चैनलों ये नजर रखता है कि किसी चैनल पर कौन सा विज्ञापन किसी समय में कितनी बार चला, जबकि एडेक्स में टैम केवल और केवल विज्ञापनों पर नजर रखता है। इन तीनों डाटा को उपलब्ध कराने के लिए टैम ने अपनी अलग- अलग फीस रखी हुई है। व्यूवरशिप डाटा के लिए टैम ने डेढ़ लाख रुपये प्रति माह की फीस तय की है, जबकि चैनल मॉनिटरिंग के लिए वो पचास हजार रुपए महीना वसूलता है। एडेक्स के लिए उसने सभी चैलनों को डेढ़ लाख रुपया प्रति माह देने को कहा है। यानी तीनों डाटा की फीस मिलाकर साढे तीन लाख रुपये। पहले ये फीस टैम अगल-अलग वसूलता था। यानि अगर कोई चैनल सिर्फ एक डाटा चाहता है तो वो सिर्फ उसकी फीस देकर उसे पा सकता था। बड़े चैनल तो तीनों डाटा खरीदते रहे हैं, लेकिन परेशानी छोटे बजट के चैनलों की है। जो टैम की भारी भरकम फीस (3.50 लाख महीना) नहीं भर सकते। ऐसे में छोटे चैनल टैम से कोई एक ही डाटा खरीदते थे और इस डाटा को दिखाकर वे भी ठीक ठाक विज्ञापन ले लिया करते थे। लेकिन अब टैम ने बड़ी विज्ञापन एजेंसियों के साथ अजीब तरह का गठजोड़ कर लिया है। इन एड एजेंसियों ने तय किया है कि वे उसी चैनल को विज्ञापन मुहैया कराएंगी जिसके पास टैम के तीनों डाटा उपलब्ध होंगे। इसी का पूरा फायदा उठा रहा है टैम। अब छोटे खासकर रीजनल चैनलों पर मुसीबत आ गई है। वे टैम के तीनों डाटा खरीदने के लिए साढ़े पांच लाख महीने की फीस आखिर कैसे चुकाएं? अगर ये पैसा नहीं चुकाया जाता तो विज्ञापनों से हाथ धोना पड़ रहा है। अब सवाल ये उठता है कि अगर ये छोटे चैनल टैम के खिलाफ लड़ाई भी लड़ें तो किसके सहारे। उनके लिए तो इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन (आईबीएफ) भी किसी काम का नहीं है जो चैनलों को उनका हक दिलाने का नारा लगाता है। दरअसल आईबीएफ ने भी अपनी मेंबरशिप फीस साढ़े पांच लाख रुपये रखी हुई है। इसके अलावा आईबीएफ अपने मेंबरों से हर साल ढाई लाख रुपये की अलग फीस भी लेता है। छोटे चैनल ये फीस भी नहीं भर सकते। आखिर वे करें तो क्या करें? लेकिन ये चैनल भी हार मानने वाले नहीं हैं। ऐसे सभी चैनलों ने मिलकर टैम के खिलाफ एक निर्णायक जंग लड़ने का मन बनाया है। खुद को जिंदा रखने के लिए वे अब एक अलग फेडरेशन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए दर्जनों रीजनल चैनलों के संचालकों और निदेशकों की बैठकें भी हो रही हैं। इस जंग में कौन जीतेगा ये बाद की बात है, लेकिन बड़ा सवाल ये बन गया है कि क्या टैम की झोली भरे बिना किसी भी चैनल की सांस चलनी असंभव है? क्या टैम यूं ही अपनी मनमानी करता रहेगा और सरकार देखती रहेगी?

Tuesday, October 6, 2009

माफ कीजिए...

दुनियाभर के दार्शनिकों ने प्रजातंत्र को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है। उन दार्शनिकों में एक नाम अरस्तु का भी है। उन्होंने प्रजातंत्र को मूर्खों का सरकार बताया था। उनकी इस परिभाषा से मिलती-जुलती एक परिभाषा मैंने भी लिखी है। ये परिभाषा मैंने मौजूदा समय के नेताओं की बदजुबानी को सुन कर तैयार किया है। नहीं तो मेरी औकात नहीं है कि मैं अरस्तु और सुकरात जैसे दार्शनिकों का नाम लूं और उनकी समकक्षता करने की हिम्मत जुटा पाऊं। मैं सबसे पहले उन महान दार्शनिकों और प्रजातंत्र के संस्थापकों से माफी मांगता हूं। साथ ही उन लोगों से भी क्षमा प्रार्थी हूं, जिन्हें मेरी इस परिभाषा से ठेस पहुंचेगा। सही मायने में कहूं, तो ये परिभाषा मैंने नहीं, बल्कि हमारे देश के नेताओं ने ही गढ़ी है। उन्होंने ही अरस्तु की परिभाषा को बदलने का साहस किया है। हमारे देश के की वजह से प्रजातंत्र ना जनता का सरकार है और ना ही मुर्खों का अब ये बतमीजों का सरकार बन गया है। अब आप खुद ही देख लीजिए कि हमारे देश के नेताओं में किस तरह से बतमीजी करने की रेस लगी है। समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह हो या कांग्रेसी नेता सत्यब्रत चतुर्वेदी। राबड़ी देवी हो या लालू प्रसाद यादव। सभी इस रेस में शामिल है और एक-दूजे को पछाड़ने में जुटे हुए हैं। ठाकरे बंधुओं ने तो इस अपनी बपौती ही बना लिया है। अब इस रेस में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी कूद पड़े हैं। नादेड़ में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे को बरसाती मेंढक करार दे दिया। उन्होंने कहा कि राज ठाकरे उस मेंढक की तरह है, जो चुनावों का मानसून आने पर बाहर निकल आते हैं और टर्राना शुरू कर देते हैं।इससे पहले ठाकरे ठाकरे बंधु एक-दूसरे के खिलाफ ऐसे ढेरों शब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं।शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने राज की तुलना एक ठेकेदार से की थी, जो दिहाड़ी पर कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के लिए काम कर रहा है। इसके जवाब में राज ने उद्धव को एक ऐत्या बिलावर नागोबा करार दिया। ये मराठी भाषा की कहावत है, जिसका मतलब एक ऐसे सांप से है, जो अपना घर खुद बनाने के बजाय बने बनाए घर पर कब्जा जमाने की फिराक में रहता है।

Wednesday, September 16, 2009

तुगलकों की भरमार है...

कौन कहता है कि तुलगलों का शासन समाप्त हो गया है? कौन कहता है कि तुगलक अब हमारे देश में ही नहीं हैं? मेरी नजर में तो भारत में तुलगकों की भरमार है। मौजूदा समय में भी उन्हीं का शासन है। हां फर्क सिर्फ इतना है कि इस समय के तुगलकों को मोहम्मद बिन तुकलक या ग्यासुद्दीन तुगलक के नाम से नहीं जानते हैं। उन्हें हम महेंद्र सिंह टिकैत और राजनाथ सिंह जैसे नामों से पुकारते हैं। ये लोग भी ठीक तुगलकों की अंदाज में ही अपना फरमान सुना रहे हैं। हालिया फरमान खुद को पश्चिमी यूपी में किसानों के नेता कहने वाले महेंद्र सिंह टिकैत की ओर से आया है। उन्होंने कहा है कि एक ही गोत्र में शादी करने वालों को पहले सबके सामने बेइज्जत करना चाहिए। अगर वे फिर भी न मानें, तो जान से मार देना चाहिए। उन्होंने ये फतवा मुजफ्फरनगर में एक जाट पंचायत में जारी किया है। इस पंचायत में उन्होंने ऐसे जोड़ों के परिजनों का सामाजिक बायकॉट करने का भी ऐलान किया। इससे पहले एक फतवा बीजेपी नेता राजनाथ सिंह की तरफ से जारी किया गया था। हरियाण के हिसार में अपनी मूंछों पर ताव फेरते हुए उन्होंने कहा था कि जिन्ना के बारे में बात करने वालों के लिए बीजेपी में कोई जगह नहीं है। यानि जो जिन्ना के बारे में बोलेगा, वो बाहर जाएगा। राजनाथ सिंह का ये बयान जसवंत सिंह की किताब जिन्ना, भारत-विभाजन के आईने में’ पर उठे बवाल के बाद आया था। उस समय बीजेपी ने जसवंत सिंह को बाहर का रस्ता भी दिखा दिया था।

Tuesday, September 15, 2009

जरा सोचिए......

आज मैं बात करने जा रहा हूं एक ऐसी हकीकत के बारे में, जिसे पढ़ने के बाद माथे पर चिंता की लकीरें गहरा जाएंगी। मन में सिहरन पैदा हो जाएगी। आंखों के सामने हिरोशिमा और नागासाकी का मंजर घूमने लगेगा। जी हां मैं बात करने जा रहा हूं न्यूक्लियर बमों की, जिसने इन दोनों शहरों में ऐसा कहर बरपाया था कि दशकों बाद सिचुएशंस पूरी तरह नहीं सुधर पाई हैं। ये तो बात हुई द्वितीय विश्व युद्ध के समय की अब नजर दौड़ाते हैं मौजूदा समय में दुनिया पर मंडरा रहे खतरों की। वर्तमाम समय में दुनिया अंगारों पर खड़ी हैं। भूल से भी किसी दुष्ट ने एक तिल्ली जला दी, तो पुरी धरती धधक उठेगी। धरती तहस-नहस हो जाएगी। जिस तरह से दुनिया भर में इस समय न्यूक्लियर बमों की होड़ लगी हैं, वो चिंतनीय है। इस समय दुनिया भर में तेईस हजार से ज्यादा न्यूक्लियर बम है। ये बम पलक झपकते ही पुरी दुनिया को नष्ट कर देने की कुबत रखते हैं। इन बम में से इक्कासी से ज्यादा बम कभी भी दागे जाने की सिचुएशन में हैं। एफएएस के रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लिए हालात और भयावह है। ऐसा मैं इस वजह से कह रहा हूं क्योंकि कि भारत के दुश्मन नंबर वन पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा न्यूक्लियर वेपंस हैं। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट की ओर से जारी रिपोर्ट में व‌र्ल्ड की नौ कंट्रीज के पास ही तेईस हजार तीन पिचानवें न्यूक्लियर वेपंस हैं। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस की संख्या अब भारत के न्यूक भंडार से ज्यादा है। हथियारों की होड़ में रूस सबसे आगे हैं। रूस का परमाणु जखीरा तेरह हजार बमों का है। वहीं नौ हजार चार सौ न्यूक वेपंस के साथ अमेरिका दूसरे नंबर पर हैं। चीन तीन वेपंस के साथ तीसरे और फ्रांस दो सौ चालीस बमों के साथ फ्रांस चौथे नंबर पर है। इस मामले में ब्रिटेन पांचवीं पोजीशन पर है। ब्रिटेन के पास एक सौ पिचासी बम हैं। इस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के पास ही तेईस हजार एक सौ पच्चीस न्यूक वेपंस हैं। दुनिया के कुल न्यूक वेपंस का अंठानवें दशमलव पांच फीसदी है। रूसी जखीरे में सत्ताईस सौ नब्बे वेपंस रणनीतिक, दो हजार पच्चास गैर रणनीतिक और चार हजार आठ सौ चालीस ऑपरेशनल हैं।वहीं अमेरिका के पास दो हजार छब्बीस रणनीतिक, पांच सौ गैर रणनीतिक और दो हजार छह सौ तेईस ऑपरेशनल वेपंस हैं। इस रिपोर्ट में इजरायल, पाकिस्तान, भारत और नॉर्थ कोरिया के पास गैर रणनीतिक एवं ऑपेरशनल यानी दागने के लिए तैयार वेपंस की संख्या अनुपलब्ध बताई गई है। अब आप खुद ही बताइए की किस आधार पर हमारे नेता विश्व शक्ति बनने का दंभ भरते हैं।

Monday, September 7, 2009

कपिलाई मार गई...कपिलाई मार गई

एक हैं जनाब कपिल सिब्बल। पेशे से मशहूर वकील रहे हैं और मौजूदा समय में मानव संसाधन विकास मंत्री है। पहले इनकी काबिलियत पर मुझे जरा सा भी संदेह नहीं था, लेकिन अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जो मंत्रालय इन्हें दी गई है, उसके लायक नहीं हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री बने इन्हें अभी छह महीने भी नहीं हुए हैं। इतने कम समय में ही इन्होंने जो कारनामा किया है, उसे जानकर पूरा देश हैरान है। लोगों ने इनसे उम्मीद लगा रखी थी कि पढ़े-लिखे हैं,शिक्षा का विकास करेंगे, लेकिन इन्होंने विकास की बजाय विनाश करना शुरू कर दिया। सोमवार को सिब्बल साहब ने बड़े ही शान से ऐलान किया कि 10वीं की बोर्ड परीक्षा 2011 से वैकल्पिक कर दी जाएगी और 2010 से ग्रेडिंग प्रणाली लागू हो जाएगी। यानी सीधे शब्दों में कहें, तो अब सीबीएसई के स्कूलों पढ़ने वाले बच्चों को दसवीं बोर्ड की परीक्षा देने का तनाव नहीं झेलना पड़ेगा। जिस छात्र की मर्जी होगी, बोर्ड की परीक्षा देगा और जिसकी मर्जी नहीं होगी, वो नहीं देगा। इस घोषणा ने उनकी काबिलयत पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। महज दो वाक्यों वाली इस घोषणा ने देश के उन करोड़ प्रतिभाव छात्रों से ऐसा भद्दा मजाक किया है, जो अपने बूते मुकाम हासिल करने की हैसियत रखते हैं। मंत्री जी ने अपने फैसले के लिए दलील दी है कि इससे छात्र आत्महत्या जैसे कदम नहीं उठाएं, लेकिन मैं, तो कहता हूं कि अब और छात्र आत्महत्याएं करेंगे। हां फर्क सिर्फ इतना होगा कि पहले मंद बुद्धि के छात्र आत्महत्या करते थे। अब विलक्षण प्रतिभा के धनी छात्र करेंगे। इस घोषणा के साथ ही देशभर के छात्र ये गीत गाने लगे हैं कि एक तो आरक्षण की लड़ाई मार गई, दूसरे रिश्वतखोरों की बेवफाई मार गई, तीसरे पोपुलेशन की अंगड़ाई मार गई, चौथे चुतिया नेतों की चतुराई मार गई बाकी कुछ बच्चा तो कपिलाई मार...कपिलाई मार गई।

Sunday, September 6, 2009

काश ऐसा होता....

कल रात एक दोस्त ने मुझसे कहा कि यार मैं तुम्हें एक ऐसी खबर सुना रहा हूं, जिसे सुनकर तुम हैरान रह जाओगे। मैंने हंसते हुए उससे पूछा ...आखिर ऐसी कौन सी खबर है, जिसे सुनाने के लिए तुम इतने उतावले हो रहे हो। इसके बाद उसने कहा कि बिहार के मोतिहारी जिले में कुत्ता, बिल्ली और तोता एक ही थाली में खाना खाते हैं। यहीं नहीं वो तीनों एक ही साथ सोते हैं। वो आपस में ठिठोलिया भी करते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि वो कभी लड़ाई भी नहीं करते । पहले तो मुझे इस पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन फिर मैंने उससे पूछा कि ये बातओ ऐसा कारनामा किसने किया है। मेरी बातों को सुनकर उसने कहा कि इस कारनामे को करने वाली एक शिक्षिका है और उसका नाम है शशिकला। महारानी जानकी कुंवर ग‌र्ल्स इंटर कालेज की प्रिंसिपल शशिकला को जानवरों और पंक्षियों से बेहद लगाव है। इसी लगाव की वजह से उन्होंने अपने घर इन तीनों को पाल रखा है। वो इन तीनों को अपने बच्चे की तरह प्यार देती है। ठीक इसी तरह ये तीनों भी उनसे प्यार करते हैं। उन्होंने कुत्ते का नाम टफी रखा है, जबकि बिल्ली का नाम पुसी। वो तोते मीठू नाम से पुकारती हैं। उसकी इन बातों को सुनकर अनायास ही मेरे मुंह उह शब्द निकल पड़ा। मैंने अपने दोस्त से कहा कि काश शशिकला जी उन जाहिलों के दिलों ऐसी प्रेम भावना भर पाती, जो बात-बात पर मारने-मरने को तैयार हो जाते हैं। काश वो राज ठाकरे जैसे नेताओं के दिलों में ऐसी प्रेम पनपा पाती, जो अपनी सियासी रोटियां सेंकने के लिए क्षेत्रियता का बीज बोते हैं। लोगों के दिलों में नफरत की भावना भरते हैं। काश बिहार के उन इलाकों में इस तरह की प्रेम की अलख जगा पाती, जिन इलाकों में लोग पढ़ने की बजाय गुड़ों के पिछलग्गु बनना पसंद करते हैं। अगर वो ऐसा करने में कामयाब हो पाती, तो वाकई बिहार पहले जैसा हो जाता। बिहार को जो छवि मौर्यवंश के शासनकाल और उसके पहले पुरी दुनिया में थी। वहीं छवि फिर से बन जाती। ऐसी बात नहीं है कि मौजूदा समय में बिहार में प्रतिभाओं की कमी है। प्रतिभाएं अभी भी मौजूद है, लेकिन हमलोग उन प्रतिभाओं में गर्व करने की बजाए, गुंडों में नाज करते हैं। हम उदय शंकर, सतीस के सिंह, संजय पुगलिया, पुण्य प्रसून वाजपेयी, रविश कुमार और किशोर मालवीय जैसे लोगों की चर्चा करने से हिचकते हैं, लेकिन जब भी हम अनजान लोगों या दूसरे राज्यों के दोस्तों के साथ होते हैं, तो माफियाओं की गौरव गाथा बड़े ही शान से सुनाते हैं। हकीकत में बिहार से ज्यादा गुंडागर्दी दूसरे राज्यों में होती है, लेकिन वहां के लोग बड़े ही चतुराई से इसे छिपा लेते हैं। यहीं वजह हैं कि मीडिया और प्रशासन पर एकछत्र राज करने के बाद भी बिहारियों को लोग हेय दृष्टि से देखते हैं, जबकि ऐसा करने वालों की बिहारियों से सामने बैठने तक की औकात नहीं है।

Tuesday, August 25, 2009

मसाला है खूब बेचो...

मंगलवार को न्यूज रुम का माहौल काफी गरमाया हुआ था। मै जैसे ही कैफेटेरिया से चाय पीकर न्यूज रुम में घुसा। मेरे एक सहयोगी ने जोर से चीखा। अरे जल्दी ब्रेक करो। उनके मुंह से ये बात निकली ही थी कि मैंने पूछा किया हुआ सर। उधर से जवाब आया। अरे सर शिल्पा शेट्टी की शादी होने वाली है। शिल्पा के पिता दिनेश शेट्टी ने सूरत कोर्ट में अपना पासपोर्ट हासिल करने करने के लिए एक अर्जी दी है। इस अर्जी में उन्होंने कहा है कि मुझे अपनी बेटी की शादी के लिए लंदन जाना है। इसके अलावा बिजनेश के सिलसिले में भी कई देशों में जाना है। इस वजह से मुझे तीन महीने के लिए पोसपोर्ट दिया जाए। इसके बाद मैंने उनसे छोड़िए सर शिल्पा शादी करे या समिता, क्या फर्क पड़ता है। मैं तो अभी तक कुंआरा हूं। मुझे तो कोई लड़की पूछ ही नहीं रही है। ये सुनते ही जवाब आया आप भी सर किस तरह की बातें करते हैं। आप क्या शिल्पा और समिता से शादी करेंगे। हमलोगों के लिए तो ये दोनों मसाला है। अब हमलोगों को तय करना है कि इस मसाले को किस तरह से बेचना है और नोट बटोरना है। ये सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने फिर उनसे कहा सर एक जनर्लिस्ट के मुंह से इस तरह की बातें अच्छी नहीं लगती। इस दौरान हम दोनों की शरीर में बिजली दौड़ रही थी। कभी इसको बता रहे थे कि ये विजुअल कटवाओं कभी रिसर्च से शिल्पा शेट्टी से जुड़ी जानकारियां हासिल कर रहे थे। पूरा न्यूज रुम कुछ समय के लिए शिल्पा मय हो गया था। एंकर चीख-चीख कर कह रहा था कि हम आपको बता रहे हैं एक एक्सक्लूसिव खबर शिल्पा शेट्टी रचाएंगी ब्याह। असाइमेंट के लोग कभी शिल्पा के दोस्त, कभी उसके परिजन और कभी रिपोर्ट को फोन लगा रहे थे। उस समय हर कोई शिल्पा के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहा था। मामला टीआरपी का था। इस वजह से बॉस लोग भी केबिन छोड़ कर बाहर निकल आए थे। यहीं नहीं वो हर किसी से पूछ रहे थे कि कुछ मिला क्या। पूरे न्यूज रुम में ऐसा लग रहा था,.जैसे शिल्पा उसी समय वहीं ब्याह रचा रही हो।बेचारे मीडियाकर्मी करें भी तो क्या मौजूदा समय की पब्लिक इसी तरह की खबरें देखना पसंद करती है। पब्लिक की पसंद ही है कि सांप-बिच्छू की खबरे दिखाने वाले चैंनलों की टीआरपी सबसे ज्यादा रहती है।

Monday, August 24, 2009

हार ने बनाया चिड़चिड़ा

लोकसभा चुनावों में मिली हार ने बीजेपी नेताओं को चिड़चिड़ा बना दिया है। पराजय की पीड़ा ने पार्टी नेताओं को इस कदर तोड़ दिया है कि वो समझ ही नहीं पा रहे हैं कि करें. तो क्या और कहें, तो क्या। इसी नासमझी का नतीजा है कि पार्टी नेताओं की जुबान बेलगाम हो गई है। हर नेता की जुबान से निकली हुई बात पार्टी को पतन की ओर ढकेल रही है। पहले जसवंत सिंह ने चिट्टी लिख कर पार्टी में बवंडर मचाया, तो फिर जसवंत सिंहा ने। कभी किसी नेता ने ये सोचने की जहमत नहीं उठाई कि
जनता ने उन्हें क्यों नकारा। मौजूदा समय में बीजेपी नेता आत्म मंथन करने की बजाय एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हैं। इसी वजह से उतराखंड में बीसी खंडूरी की कुर्सी गई और अब वसुंधरा राजे की बारी है। उनकी विदाई की भी स्क्रीप्ट लिखी जा चुकी है। इस समय बीजेपी नेताओं की दशा खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे जैसी हो गई है। सीधे शब्दों में कहे, तो बीजेपी विघटन की कगार पर है और बहुत जल्द ही पार्टी में बंटवारा होने वाला है। इसकी शुरुआत जसवंत सिंह के निष्कास और सुधीर कुलकर्णी के इस्तीफे से शुरू हो चुकी है। अब बारी अरुण शौरी की है। अरुण शौरी ने तो मान मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए पार्टी को प्राइवेट कंपनी तक करार दे दिया है। उन्होंने बीजेपी को कटी पतंग बताते हुए आरएसएस से सभी बड़े नेताओं को हटाकर पार्टी को अपने कब्जे में लेने की गुहार लगाई है। यहीं नहीं उन्होंने राजनाथ सिंह हम्टी-डम्टी कह कर पार्टी हुक्कमरानों से साफ कह दिया है कि मुझे अब मुक्त करो। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर बीजेपी नेता इतने हताश क्यों हैं। वो जनता के बीच जाना क्यों नहीं चाह रहे हैं। जब तक वो जनता के बीच नहीं जाएंगे, जनता के लिए काम नहीं करेंगे, तब तक वो चाहे अगल पार्टी बनाएं या फिर किसी पार्टी में शामिल हो जाएं, जनता नकारती रहेगी। बिना काम किए एक बार नहीं हजारों बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ेगा। अब नब्बे की दशक जैसी हलात नहीं है कि राम के सहारे उनकी नैया पार लग जाएगी। जनता अब बीजेपी नेताओं की हकीकत जान चुकी है। अब वो केवल और केवल काम को देख कर ही इन्हें वोट देगी।

Friday, August 21, 2009

बीजेपी की भूल

शिमला के चिंतन बैठक में बीजेपी ने अपने एक सिपाही से रिश्ता तोड़ लिया। पार्टी ने अपने उस कद्दावर नेता से मुंह मोड़ लिया, जो पिछले तीस सालों से उसके साथ जुड़ा हुआ था। बीजेपी नेताओं ने शिमला पहुंचे के बाद सबसे पहला काम जो किया, वो था जसवंत सिंह का निष्कासन। हालांकि जसवंत के निष्कासन की स्क्रीप्ट दिल्ली में लिखी जा चुकी थी। शिमला में तो उसे महज सार्वजनिक करना था। दिन में करीब एक बजे पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जसवंत सिंह को फोन करके उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटाने की खबर सुनाई। इससे पहले राजनाथ सिंह ने जसवंत सिंह को फोन करके बैठक में शामिल नहीं होने को कहा था, लेकिन तब तक वो शिमला के लिए रवाना हो चुके थे। जसवंत सिंह पार्टी अध्यक्ष की बात को मान कर बैठक में शामिल नहीं हुए। वो अपने लिए अलग होटल बुक कर पार्टी के फैसले का इंतजार करते रहे। उनकी इंतजार की घड़ी लंबी नहीं हुई। पार्टी अध्यक्ष ने चंद ही घंटे में फोन के जरिए अपना फैसला सुना दिया, लेकिन पार्टी ने जिस तरह से ये फैसला लिया। उससे लोकसभा चुनावों में मिली हार और उसकी बौखलाहट साफ दिखा पड़ रहा है। आखिर जसवंत सिंह ने ऐसी कौन सी गुनाह कर दी है, जिसकी वजह से पार्टी ने उनके साथ ऐसा वर्ताव किया। उनका गुहान सिर्फ इतना ही है कि उन्होंने अपनी किताब में जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष करार दिया। साथ ही देश के बंटवारे के लिए जिन्ना के साथ ही सरदार बल्लभ भाई पटेल और नेहरु को भी जिम्मेदार ठहराया है। अगर जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने की वजह से जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है, तो फिर आडवाणी के खिलाफ पार्टी ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। आडवाणी तो ये गुनाह काफी पहले कर चुके हैं। पार्टी का ये दोहरा मापदंड हमारे समझ से परे है। एक तरह से कहें, तो बीजेपी ने इस कार्रवाई के जरिए जसवंत सिंह के मौलिक अधिकारों का हनन किया ठीक है कि जसवंत सिंह ने पार्टी के विचारधारा के खिलाफ बातें लिखी और इसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन ये कैसी नीति है कि उन्हें अपने पक्ष को रखने का मौका भी नहीं दिया जाए। उनसे ये नहीं पूछा जाए कि आपने ऐसा क्यों किया। शायद बीजेपी में बैठे जसवंत के विरोधी गुट के नेताओं को ये लग रहा होगा कि इस कार्रवाई को पार्टी जनता के दिल को जीत लेगी, तो ये उनकी भूल है। इससे जनता के बीज पार्टी की छवि और खराब हुई है। जनता को मौजूदा समय में जिन्ना या नेहरू की महिमा मंडल करने की नहीं, बल्कि रोजी और रोटी की दरकार है।

Sunday, August 16, 2009

भारत और अमेरिका में फर्क

पंद्रह अगस्त को मैं अपने एक दोस्त के साथ बैठ कर टीवी देख रहा था। उस समय सभी न्यूज चैनल लाल किले से किए गए प्रधानमंत्री के वादों पर टिप्पणी कर रहे थे, तभी टेलीविजन स्क्रीन एक ब्रेकिंग न्यूज फ्लैश हुई। वो खबर थी कि अमेरिका में बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान को अपमानित किया गया। इसकी अगली लाइन थी कि शाहरुख को पूछताछ के लिए नेवार्क-न्यूजर्सी एअरपोर्ट पर दो घंटे तक बैठाया गया। इतना पढ़ने के बाद मैंने कहा साले अमेरिकी एशियाई मुल्क के लोगों के साथ अक्सर इस तरह का सलूक करते रहते हैं, लेकिन हमलोग अपमान का घूंट पीने के बाद भी चुप रह जाते हैं। इसके बाद मेरे दोस्त ने मुझसे कहा कि इतने पढ़े लिखे होने के बाद भी तुम्हारी मानसिकता गुलामों जैसी है। तुम भी पूछताछ को अपमान मानते हो। उसने कहा कि कम से कम तुमसे तो ये उम्मीद नहीं थी कि इस तरह की बातें करोगे। आगे उसने कहा कि अच्छा ये बताओ कि हवाई अड्डे के कर्मचारियों ने क्या बुरा किया। उसने कहा कि हवाई अड्डे कर्मचारियों को पूरा हक है कि जब तक वो पूरी तरह से संतुष्ट ना हो जाए कि कौन व्यक्ति कहां से आया है और कहां जाएगा, उसे बैठा सकते हैं। उससे पूछताछ कर सकते हैं। सुरक्षा के नजरिए से यही उचित हैं। इस पर मैंने कहा कि हमारे यहां, तो किसी अमेरिकी सिलेब्रिटी के साथ इस तरह से पूछताछ नहीं की जाती है, तो उसने फिर मुझे रोका और कहा कि यही तो भारत और अमेरिका में फर्क है। वो अपने अपने देश की सुरक्षा के लिए पूरी तरह सतर्क रहते हैं, लेकिन हम इस मामले में काफी लापरवाह हैं। उसने कहा कि अमेरिका का राष्ट्रपति आम आदमी से भी माफी मांग लेता है। वहीं हमारे यहां सिलेब्रिटी अपने आपको भगवान मानते हैं। उसने कहा कि अमेरिका के इसी रवैए की वजह से नाइन इलेवन के बाद आज तक कोई आतंकी हमला नहीं हुआ, जबकि भारत में हर समय होते रहते हैं। वहां के लोग अपनी गलतियों से सीख लेते हैं, लेकिन हमलोग उसे बार-बार दोहराते हैं। उसने मुझसे पूछा कि अच्छा ये बताओ कि जब एक आम आदमी की जांच की जा सकती है, तो शाहरुख खान की क्यों नहीं। फिर उसने कहा कि देखना अब इसको लेकर हमारे देश में कितने जाहिल जपाट लोग जुलूस निकालेंगे। हुआ भी यही सलमान खान ने जब शाहरुख खान के साथ हुई पूछताछ को आम घटना बता दिया, तो कुछ आवारा प्रवति के लोग पहुंच गए सलमान के घऱ और करने लगे नारेबाजी। इसके बाद मुझे अपने आप पर बहुत ग्लानि हुई और मैंने पाया कि उस समय मैं गलत था और मेरा दोस्त सही।

Wednesday, August 12, 2009

बेशर्मों की मंडी बोले तो सच का सामना

इस समय टेलीविजन चैनलों ने मंडी लगा रखी है। इस मंडी को किसी ने इस जंगल से मुझे बचाओ नाम दिया है, तो कोई इसे सच का सामना नाम से पुकार रहा है। नोट के बल पर इस मंडी की ऐसी पैकेजिंग की गई है कि लोग देख कर हैरान रह जाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि जब मंडी की इतनी अच्छी पैकेजिंग हुई है, तो सामान भी बढ़िया बिक रहा होगा। इस बारे में मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि बिकने वाला सामान बढ़िया ही नहीं बहुत बढ़िया है। इस मंडी में जिस्म की बोली लगाई जा रही है। टेलीविजनवाले मुंह मांगा दाम देकर हमसे अपनी इज्जत को नीलाम करने के लिए कह रहे हैं, लेकिन इसमें उनका क्या कसूर है। पैसे की चाह ने हमसभी को इस कदर अंधा बना दिया है कि हम खुद खुशी-खुशी नंगा होकर उनके बाजुओं में जाकर बैठने को तैयार हो जा रहे हैं। पैसे के लिए जहां सुंदरियां जंगल में जाकर झरने के लिए नंगे नहा रही हैं, वहीं स्टार प्लस के कार्यक्रम सच का सामना में हमलोग अपने कुकर्मों के बारे में दुनिया को अगवत करा रहे हैं। स्टार प्लस अपने होस्ट राजीव खंडेवाल के माध्यम से इस कार्यक्रम में हमलोगों से नाजायज रिश्तों के बारे में पूछ रहा है और हम बिना सहमे बड़े ही बेशर्मी से उन रिश्तों के बारे में बता रहे हैं। इस दौरान हॉट सीट पर बैठे लोगों के सामने उनके बेटे, बेटी, पत्नी और सगे-संबंधी भी मौजूद रहते हैं। इस कार्यक्रम में किसी से पूछा जाता है कि क्या आपने अपनी बेटी से कम उम्र की लड़की से सेक्स किया है, तो किसी से शादी शुद्धा होने के बाद भी गैर मर्द से बच्चा पैदा करने की चाहत पूछी जाती है। किसी से सवाल किया जाता है कि क्या आपने किसी लड़की से गर्भ गिराने के लिए दबाव डाला है, तो किसी से नाबालिग अवस्था में गर्भवती होने की वजह से कॉलेज से निकाले जाने के बारे में बताने को कहा जाता है। अब हम इस कार्यक्रम के पेश करने वालों से एक सवाल पूछना चाह रहे हैं कि सच को मापने का पायमाना केवल अवैध संबंध है। क्या इसी के जरिए किसी सच बोलने और नहीं बोलने का आंकलन किया जा सकता है। क्या इसी तरह के कार्यक्रम के जरिए ही किसी को साहसी होने और नहीं होने का प्रमाण पत्र दिया जा सकता है। अगर हां, तो इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले महापुरुषों को अपने नाबालिग बेटे और बेटियों से भी ये पूछना चाहिए कि क्या तुम्हारा किसी से अवैध संबंध हैं। क्या इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले लोग अपने मासूम बच्चों के इस तरह की गलतियों को बर्दास्त कर सकेंगे। इस सवाल का जवाब सिर्फ और सिर्फ नहीं हैं। मुझे तो हैरानी इस बात की है कि इस कार्यक्रमों को देखने के बाद भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय चुप क्यों बैठा है। इस तरह के कार्यक्रम पर तत्काल रोक लगानी चाहिए, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मासूम बच्चे भी बिना डरे सबसे सामने ये कहते पाए जाएंगे कि मैं इससे शारीरिक संबंध बनाना चाहती/चाहता हूं। मेरे इतने से नाजायज रिश्ते हैं। सही मायने में स्टार प्लस का कार्यक्रम हमसभी को पशुता की ओर ले जा रहा है।

बाबा का बड़बोलापन

एक हैं बाबा राम देव। वैसे तो बाबा योग गुरु हैं, लेकिन भोग में भी इनकी गहरी दिलचस्पी है। राजनीति हो या फिल्म, अध्यात्म हो या कर्मकांड सभी क्षेत्रों में बाबा टांग अड़ा देते हैं। कभी ये फिल्म सितारों पर चुस्की लेते हैं, तो कभी राजनीति में आने की बात करते हैं। सुर्खियों में बने रहने के लिए बाबा समय-समय पर ऐसी वाणी बोलते रहते हैं, जिससे मीडिया का ध्यान इनकी ओर आकर्षित हो जाता है। हाल ही में लगे सदी से सबसे लंबे सूर्यग्रहण के पहले बाबा ने मीडिया के माध्यम से ज्योतिषियों को चुनौती देकर वाहवाही बटोरी थी, लेकिन इसके बाद ये मीडिया की नजरों से दूर हो गए थे। हर जगह हर पल बाबा की चर्चा ना हो ये इन्हें कतई बर्दास्त नहीं है। बाबा का एक ही फंडा है कि चर्चा में बने रहने के लिए कुछ भी करेगा। इस बार बाबा रामदेव ने आदि गुरु शंकराचार्य के सिद्धांत ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या को चुनौती देकर मीडिया का ध्यान खींचा है। बाबा ने शंकराचार्य के दार्शनिक सूत्र और सनातन धर्म का बुनियादी सिद्धांत पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि इसने लोगों के काम करने की प्रवृति को नष्ट किया है। बाबा की इस कटु वाणी से देशभर के शंकराचार्य और धर्मगुरु नाराज हैं। कई धर्म गुरुओं ने तो यहां तक कह दिया है कि रामदेव को शंकराचार्य के बारे में जानकारी नहीं हैं। बहरहाल मैं तो ये नहीं कह सकता हूं कि बाबा को शंकराचार्य या सनातन धर्म के बार में जानकारी है या नहीं, लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि बाबा कि इन उलजलुल बातों में पड़ने की बजाय योग के माध्यम से लोगों की सेवा करनी चाहिए।

Monday, August 10, 2009

बूटा का कुर्सी मोह

कुछ समय पहले एक मूवी आई थी लव के लिए साला कुछ भी करेगा....। यह टाइटिल वर्तमान समय के राजनीतिज्ञों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। फर्क सिर्फ इतना है कि नेता जी लोग लव के जगह कुर्सी शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यानि सीधे शब्दों में कहें, तो कुर्सी के लिए साला कुछ भी करेगा...। अब आप बूटा सिंह को ही ले लीजिए। इन्हें कुर्सी से इस कदर लगाव है कि वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते हैं। बूटा सिंह मौजूदा समय में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं। १९३४ में पंजाब के जलंधर जिले में पैदा हुए बूटा सिंह केंद्रीय गृहमंत्री और राज्यपाल जैसे पदों पर भी आसीन रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी उनका कुर्सी से मोह भंग नहीं हुआ है। वे आज भी कुर्सी को जकड़े हुए हैं। सही मायने में बूटा सिंह कलयुग के धृतराष्ट्र हैं, जो अपनी इज्जत, तो गंवा सकता है, लेकिन कुर्सी नहीं। हाल ही में बूटा सिंह के बेटे सरबजोत सिंह पर एक करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप लगा है। इसको लेकर सरबजोत जेल भी गए थे। मामला अल्पसंख्यक आयोग से जुड़ा हुआ है। इस वजह से विरोधी पार्टी के नेताओं ने बूटा सिंह पर हमला बोला। विपक्षी पार्टी के नेताओं ने बूटा सिंह से इस्तीफे की मांग की। इसके बाद बूटा सिंह ने आनन -फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाया और बेटे पर लगे आरोपों को राजनीति साजिश करार दे दिया। बूटा सिंह यहीं नहीं रुके। उन्होंने विरोधियों पर अपने राजनीतिक करियर को चौपट करने का आरोप लगाया और साफ कह दिया कि मैं मर जाऊंगा, लेकिन इस्तीफा नहीं दूंगा। अब आप खुद ही बताइए कि बूटा सिंह के इस हठ धर्मिता को क्या कहेंगे। छोड़िए आप जो भी कहें, लेकिन मैं तो यहीं कहूंगा कि कमाल के हैं बूटा सिंह और कमाल का है उनका कुर्सी मोह।

Sunday, August 9, 2009

आजाद की अनैतिक वाणी

इस समय पूरी दुनिया स्वाइन फ्लू नाम की महामारी से जुझ रही है। इस बीमारी ने कई जिंदगियों को निगल लिया है। अभी तक चार भारतीयों की भी जाने गई हैं। भारत में सबसे पहले इस बीमारी से पूणे में एक चौदह साल की लड़की की मौत हुई थी। रीदा शेख नाम की इस लड़की की मौत से परिजन दुखी हैं। सबने इस घटना पर खेद प्रकट किया, लेकिन उसी व्यक्ति ने खेद नहीं जताया, जिसे सबसे पहले जताना चाहिए था। मेरा इशारा हमारे देश के स्वास्थ्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की ओर है। उन्होंने रीदा की मौत को लेकर बयान तो दिया, लेकिन उस बयान ने रीदा के परिजनों के दुख को कम करने की बजाय और बढ़ा दिया। उन्होंने एक टेलीविजन चैनल पर बैठ कर कहा कि रीदा इलाज के लिए तीन अस्पतालों में गई थी। इस तरह से उसने पिचासी लोगों में स्वाइन फ्लू के वायरस को फैलाया। आजाद के इस बयान से परिजन हैरान हैं। अब वे आजाद से माफी और इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। वैसे उनकी ये मांग उचित भी है। आजाद ने ऐसा काम ही किया है कि उसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। आजाद का ये बयान उनकी गैर जिम्मेदार रवैए को दर्शाता है। किसी भी देश के स्वास्थ्यमंत्री की मुंह से इस तरह के बयान की अपेक्षा जनता कभी भी नहीं कर सकती है। रीदा की जगह अगर आजाद की बेटी की मौत हुई होती, तो क्या वे इस तरह का बयान देते। क्या वे उस समय भी कहते की मेरी बेटी का इलाज तीन अस्पतालों में हुआ है और उसके संपर्क में आने से पिचासी लोगों में बीमारी फैली है। जिसके हाथों में देशभर के लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, उस नेता के मुंह से इस तरह का बयान निकलना चिंतनीय है। आजाद को इस तरह का बयान देने से बाज आना चाहिए और अपनी इस गलती पर रीदा के परिजनों के साथ ही पूरे देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। चलीए मान लेते हैं कि रीदा ने पूणे में पिचासी लोगों एच1एन1 वायरस को फैलाया है, लेकिन इस ये बीमारी देश के बाकी हिस्सों में भी फैली है। इससे रोग से ग्रसित मरीजों की गुजरात और मुंबई में भी मौते हुई हैं। क्या आजाद साबह ये बताएंगे कि देश के जिन, जिन इलाकों में ये बीमारी फैली है, उन सभी जगहों पर रीदा इलाज कराने के लिए गई थी। वातानुकुलित कमरों में बैठ कर इस तरह का बयान देना बहुत आसान होता है। आजाद को इस तरह के बयान देने की बजाय स्वाइन फ्लू से निपटने के बारे में विचार करना चाहिए। वे किसी दुखी परिवार के घाव पर मरहम नहीं लगा सकते हैं, तो कम से कम उसे उकेरे, तो नहीं। वातानुकुलित कमरे में बैठ कर बयान दे देना बहुत आसान होता है, लेकिन काम करके दिखाना बहुत कठिन। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि सरकार इस बीमारी को लेकर चिंतित नहीं है, लेकिन जितनी तत्परता इससे निपटने के लिए दिखानी चाहिए थी, उतनी तत्परता देखने को नहीं मिल रही है। पूरी दुनिया इस हकीकत को जानती कि स्वाइन फ्लू एक-दूजे के संपर्क में आने से फैलता है। देश में अब तक स्वाइन फ्लू के 783 मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 500 रोगियों का इलाज हो चुका है। इस घातक बीमारी का सबसे अधिक असर दिल्ली और महाराष्ट्र में देखा जा रहा है।