Tuesday, October 6, 2009

माफ कीजिए...

दुनियाभर के दार्शनिकों ने प्रजातंत्र को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है। उन दार्शनिकों में एक नाम अरस्तु का भी है। उन्होंने प्रजातंत्र को मूर्खों का सरकार बताया था। उनकी इस परिभाषा से मिलती-जुलती एक परिभाषा मैंने भी लिखी है। ये परिभाषा मैंने मौजूदा समय के नेताओं की बदजुबानी को सुन कर तैयार किया है। नहीं तो मेरी औकात नहीं है कि मैं अरस्तु और सुकरात जैसे दार्शनिकों का नाम लूं और उनकी समकक्षता करने की हिम्मत जुटा पाऊं। मैं सबसे पहले उन महान दार्शनिकों और प्रजातंत्र के संस्थापकों से माफी मांगता हूं। साथ ही उन लोगों से भी क्षमा प्रार्थी हूं, जिन्हें मेरी इस परिभाषा से ठेस पहुंचेगा। सही मायने में कहूं, तो ये परिभाषा मैंने नहीं, बल्कि हमारे देश के नेताओं ने ही गढ़ी है। उन्होंने ही अरस्तु की परिभाषा को बदलने का साहस किया है। हमारे देश के की वजह से प्रजातंत्र ना जनता का सरकार है और ना ही मुर्खों का अब ये बतमीजों का सरकार बन गया है। अब आप खुद ही देख लीजिए कि हमारे देश के नेताओं में किस तरह से बतमीजी करने की रेस लगी है। समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह हो या कांग्रेसी नेता सत्यब्रत चतुर्वेदी। राबड़ी देवी हो या लालू प्रसाद यादव। सभी इस रेस में शामिल है और एक-दूजे को पछाड़ने में जुटे हुए हैं। ठाकरे बंधुओं ने तो इस अपनी बपौती ही बना लिया है। अब इस रेस में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी कूद पड़े हैं। नादेड़ में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे को बरसाती मेंढक करार दे दिया। उन्होंने कहा कि राज ठाकरे उस मेंढक की तरह है, जो चुनावों का मानसून आने पर बाहर निकल आते हैं और टर्राना शुरू कर देते हैं।इससे पहले ठाकरे ठाकरे बंधु एक-दूसरे के खिलाफ ऐसे ढेरों शब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं।शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने राज की तुलना एक ठेकेदार से की थी, जो दिहाड़ी पर कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के लिए काम कर रहा है। इसके जवाब में राज ने उद्धव को एक ऐत्या बिलावर नागोबा करार दिया। ये मराठी भाषा की कहावत है, जिसका मतलब एक ऐसे सांप से है, जो अपना घर खुद बनाने के बजाय बने बनाए घर पर कब्जा जमाने की फिराक में रहता है।